परम स्वरूप अनाम है।

मानव जीवन चाहत के फूलों की माला है।ऐक अनेक अखण्ड हम अव्यक्ताव्यक्त प्रज्ञा-प्रेम दोनों त्रिगुणात्मिका प्रकृति पंच महाभूत दिव्य देही प्राप्त देह कर्तव्य कर्म अभेदत्व सम्प्राप्ति मानव जीवन की सार्थकता है।
कहते है-बिन मागें मोती मिले,मागें मिले न भीख।लीला मयी की यही लीला, मिलना और बिछुडना है।परम अक्षर पुरुषोत्तम सत् निरजंन अखण्ड अनादि अस्तित्व को उजागर करने वाले श्री दाता समरा देव स्वयं प्रकाश है।जगत् मे मानव शरीर प्रथमतः भाषा रहित प्रकट होता है।वह अस्तित्व से जुड़ा रहता है-प्रथम भाषा अ अ आ आ का उच्चारण करता है फिर माँ माँ शब्द उच्चारित होता है।अस्तित्व परम प्रकाश सत्ता मे औंकार  परमात्मा -आत्मा नाम से कहा जाता है।परम स्वरूप अनाम है।मनुष्य नेअपनी भाषा मे परमात्मा,-आत्मा ईश्वर अवतार बनाये है।यह मानव मन का अविष्कार है।हम बहिर्मुख से कलपना के आश्रय अन्तर्मुखी सूक्ष्म स्मरण, घ्यान-भजन से साक्षी-द्रष्टा की स्थिति का अनुभव करके ही स्व को जान सकते है।कर्ता कोई और है हम समझते है हम करते है।समर्पण और स्वीकृति ही अमृतत्व प्राप्ति सम्प्राप्ति स्त्री-पुरूष लिगं देह भेद रुपी अज्ञान निवृत्ति दिव्य प्रज्ञा-प्रेम है।तुम ही तो मैं हूँ अनन्त,अनेक अखण्ड दिव्य श्री दाता देव समरा गुर्जर देव वाणी।जाति स्मर दिव्य देही रुप देह स्री पुरूष रूप देह आयुर्ज्ञान -विज्ञान।
त्रिपुर सुन्दरी रहस्य गुर्जर कन्या गायत्री-सावित्री विद्या रुप प्रतिष्टित है। 


परमात्मा -आत्मा नाम से कहा जाता है।परम स्वरूप अनाम है।मनुष्य नेअपनी भाषा मे परमात्मा,-आत्मा ईश्वर अवतार बनाये है।यह मानव मन का अविष्कार है।हम बहिर्मुख से कलपना के आश्रय अन्तर्मुखी सूक्ष्म स्मरण, घ्यान-भजन से साक्षी-द्रष्टा की स्थिति का अनुभव करके ही स्व को जान सकते है।कर्ता कोई और है हम समझते है हम करते है।समर्पण और स्वीकृति ही अमृतत्व प्राप्ति सम्प्राप्ति स्त्री-पुरूष लिगं देह भेद रुपी अज्ञान निवृत्ति दिव्य प्रज्ञा-प्रेम है।तुम ही तो मैं हूँ अनन्त,अनेक अखण्ड दिव्य श्री दाता देव समरा गुर्जर देव वाणी।जाति स्मर दिव्य देही रुप देह स्री पुरूष रूप देह आयुर्ज्ञान -विज्ञान।
त्रिपुर सुन्दरी रहस्य गुर्जर कन्या गायत्री-सावित्री विद्या रुप प्रतिष्टित है।